Here in this post we describes Some Basic concepts of Chemistry class 11 : जैल (Gel), what is gel, classification of gel, characteristics of gel, method of making gel etc.
Table of Contents
Chemistry class 11 : जैल (Gel)
ओस्टवाल्ड के अनुसार – जैल (Gel) एक अर्ध्द ठोस कोलाइडी तन्त्र है , जिसमे जल या द्रव की मात्रा बहुतायत में होती हैं | इसमें सामान्यतः दो घटक होते हैं | ये सामान्यतः ठोस – द्रव होते हैं | जिलेटिन – जल अथवा सेलिसिलिक अम्ल – जल इसके उदाहरण हैं | दो से अधिक घटकों वाले जैल भी ज्ञात है , जैसे – माँस आदि | जैल को कभी – कभी जैली भी कह दिया जाता है लेकिन मैकबेन के अनुसार जैल तथा जैली दोनों में अन्तर हैं | इसके अनुसार जैल द्रव बाहुल्य वाला कोलाइडी तन्त्र भी हो सकता हैं | और शुष्क कोलाइडी तन्त्र भी हो सकता है जबकि जैली से आशय केवल अत्यधिक द्रव बाहुल्य कोलाइडी तन्त्र से हैं | शुष्क जैल , जीरो जैल भी कहलाता है | जिलेटिन की चादर , सैलोफिन की पत्ती शुष्क जैल के उदाहरण हैं | जैल निर्माण के साथ ही तन्त्र की श्यानता में वृध्दि होती हैं |
जैल का बनना द्रव – स्नेही कोलाइडी की भांति है | जब तन्त्र का सांद्रण , ताप तथा हाइड्रोजन आयन सान्द्रता उपर्युक्त होती है तब द्रव – स्नेही कोलाइडी तन्त्र जैल में परिवर्तित हो जाता हैं | अतः जैल एक असामान्य प्रकार का द्रव – स्नेही कोलाइडी तन्त्र हैं | जिसमे ठोस के कण सम्पूर्ण द्रव में एक प्रकार के जाल की भांति व्यवस्थित रहते हैं |
Chemistry class 11 : जैल (Gel) का वर्गीकरण
जैल को उनके गुणों के आधार पर निम्न दो वर्गों में विभाजित किया गया है –
- प्रत्यास्थ जैल – प्रत्यास्थ जैल उत्क्रमणीय होते हैं | जब इनका निर्जलीकरण किया जाता है तो ये ठोस में परिवर्तित हो जाते है और पुनः इनमे जल मिलाकर हल्का गर्म करने पर ये अपनी पूर्ण अवस्था में आ जाते है , जैसे – जिलेटिन , अगर – अगर और स्टार्च प्रत्यास्थ जैल के उदाहरण हैं | जब प्रत्यास्थ जैल को जल के सम्पर्क में रखा जाता है तो वह जल सोख लेता है और फूल जाता है यह प्रक्रिया फूलना कहलाती है |
- अप्रत्यास्थ जैल – अप्रत्यास्थ जैल अनुत्क्रमणीय होते हैं | जब इनका निर्जलीकरण किया जाता है , तो ये ग्लासी या पाउडर में बदल जाते है और जल मिलाकर गर्म करने पर पुनः पूर्व अवस्था में नहीं आते है , जैसे – सिलिका ,ऐल्यूमिना और फेरिक ऑक्साइड अप्रत्यास्थ जैल के उदाहरण हैं | इसलिए जब सिलिका जैल का निर्जलीकरण किया जाता है और फिर जल मिलाया जाता है तो वह पुनः जैल में परिवर्तित नहीं होता हैं |
जैल बनाने की विधियाँ
- विलायक – विनिमय द्वारा – कुछ सोल से जैल के निर्माण में जिलेटिकरण की प्रक्रिया विलायक , जिसमे वह अविलेय होता है , के विनिमय द्वारा की जाती है | एसीटेट जैल के निर्माण में शुध्द एल्कोहाल को कैल्सियम एसीटेट के जलीय विलयन में मिलाया जाता है | इस प्रकार सम्पूर्ण एल्कोहाल कैल्सियम एसीटेट में मिलकर जैल में परिवर्तित होता है |
- सोल को ठण्डा करके – जिलेटिन और अगर – अगर के जैल उनके सोल की कुछ मात्रा को गर्म जल में घोलकर ठण्डा करके प्राप्त किये जाते है | जल स्नेही सोल पूर्णतया हाईड्रेटेट होते हैं | जब इन्हें ठण्डा किया जाता है तो जल में घुलित कण आपस में जुड़कर समूह बनाते है , जो अन्ततः अर्ध्द – ठोस , जिसमें सम्पूर्ण द्रव समाहित होता है , में बदल जाते है और प्राप्त उत्पाद अर्ध्द – ठोस जैल के रूप में प्राप्त हो जाता है |
- उभय – अपघटन द्वारा – कुछ सोल के जैल उभय अपघटन द्वारा प्राप्त किये जाते है | सैलिसिलिक अम्ल का जैल सोडियम सिलिकेट में जल मिलाकर प्राप्त किया जाता है | इस उभय – अपघटन की प्रक्रिया के दोरान मुक्त सिलिसिलिक अम्ल प्राप्त होता हैं | इस अम्ल के निर्माण के कारण ठोस जैल प्राप्त हो जाता हैं |
Chemistry class 11 : जैल (Gel) के गुण
- प्रकाशीय गुण – जैल double refraction का गुण प्रदर्शित करते है |
- सिनरेसिस – कई अकार्बनिक जैल कुछ देर रखने पर संकुचित हो जाते है ,क्योंकि विलायक का अभिगमन हो जाता है | यह प्रक्रिया सिनरेसिस कहलाती है |
- विधुत चालकता – जब सोल को जैल में परिवर्तित किया जाता है तो उसकी विधुत चालकता में कोई परिवर्तन नहीं होता है | इससे यह सिध्द होता है कि इस रूपान्तरण में केवल अवस्था परिवर्तन होता है |
- फूलना या प्रसार – आंशिक रूप से निर्जलीय प्रत्यास्थ जैल जल सोख लेता है | इसके कारण जैल का आयतन बढ़ जाता है और इस प्रक्रिया को फूलना कहते हैं |
- थिक्सोट्रापी – कुछ सोल स्थिर अवस्था में अर्ध्द – ठोस अवस्था में होते है , परन्तु विक्षेपित करने पर द्रव – सोल में परिवर्तित हो जाते है | यह उत्क्रमणीय सोल – जैल रूपान्तरण थिक्सोट्रापी कहलाती हैं | आयरन ऑक्साइड और सिल्वर ऑक्साइड यह गुण प्रदर्शित करते हैं | पेण्ट भी इसके प्रमुख उदाहरण हैं |
- जल – अपघटन – यह पूर्णतया निर्जलीय प्रत्यास्थ जैल को पुनः जल मिलाकर प्राप्त किया जा सकता हैं | परन्तु एक अप्रत्यास्थ जैल को जल मिलाकर पुनः जिलेटिकरण द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता हैं |
- प्रत्यास्थ गुण – ठोस की तरह जैल भी प्रत्यास्थता का गुण प्रदर्शित करते हैं |
स्वतंत्रता की कोटि
प्रावस्था में प्राप्त निकाय प्रावस्थाओं के दाब , ताप और संघटन द्वारा प्रभावित होता है | प्रावस्थाओं के परिवर्तनशील कारकों दाब , ताप और संघटन की न्यूनतम संख्या जिसे निकाय की दशा को पूर्णतः परिभाषित करने के लिए स्वेच्छ्तः निश्चित करना अनिवार्य है , निकाय की स्वतंत्र कोटि कहलाती है | यह निम्न उदाहरण द्वारा स्पष्ट हो जाती है –
- यदि दो या दो से अधिक गैसों से किसी गैसीय निकाय का स्वतंत्र दाब और ताप ज्ञात है तो वह पूर्णतः अभिव्यक्त हो जाता है |
उदाहरण – 40% CO2 और 60% N2 का 300C और 780 mm दाब पर मिश्रण पूर्णतः परिभाषित है |
- इस निकाय में केवल एक स्वतंत्र कोटि हैं | इसी प्रकार अपने वाष्प के साथ साम्यावस्था में जल के निकाय ताप को निश्चित करना ही पर्याप्त है | ठोस लवण और वाष्प के सम्पर्क में संतृप्त सोडियम क्लोराइड विलयन का निकाय केवल ताप के उल्लेख द्वारा ही पूर्णतः परिभाषित हो जाता है |
- निकाय बर्फ – जल – वाष्प के लिए किसी और दशा के उल्लेख की आवश्यकता नहीं है | तीनों प्रावस्थाएँ केवल एक निश्चित ताप पर व दाब पर ही साम्यावस्था में हो सकती है |
अतः इस निकाय में कोई स्वतंत्र कोटि नहीं है | स्वतंत्र कोटि – शून्य , एक ,दो तीन होने के अनुरूप निकाय को अचर एक चर , द्विचर और त्रिचर भी कहा जाता हैं |
त्रिक बिन्दु
वह बिन्दु जिसमे एक पदार्थ की तीनों प्रावस्थाएँ – ठोस ,द्रव व गैस साम्य में रहती है , त्रिक बिन्दु कहलाता है | त्रिक बिन्दु पर तन्त्र का ताप और दाब का मान निश्चित होता है , इनका मान बदलने पर कोई एक प्रावस्था गायब हो जाती है |
उदाहरण – जल तन्त्र में ताप बढ़ाने पर बर्फ पिघलकर द्रव बनने लगती है और द्रव का ताप तब तक नहीं बढ़ता जब तक कि सारी बर्फ दो प्रावस्थाएँ द्रव और वाष्प बचती है | त्रिक बिन्दु पर स्वतंत्रता की कोटि शून्य होती है |
प्रावस्था नियम
प्रावस्था नियम विषमांग निकायों के व्यवहार से सम्बन्धित एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यापक नियम है |
सामान्य रूप से यह कहा जा सकता है कि प्रावस्था नियम के अनुप्रयोग से आरेख द्वारा गुणात्मक रूप से साम्यावस्था में आये हुए विषमांग निकाय पर दाब , ताप और सान्द्रण में परिवर्तन के प्रभाव की व्याख्या की जा सकती है | समस्त विषमांग साम्यावस्थाओं को नियन्त्रित करने वाले इस सम्बन्ध की खोज सर्वप्रथम अमरीकी भौतिकविद विलर्ड गिब्स ने की थी |
गिब्स का प्रावस्था नियम ऐसे दोषों तथा बन्धनों से मुक्त है जो द्रव की रचना की प्रकृति के बारे में संकल्पनात्मक अभिग्रहितों पर आधारित रसायन के अन्य सामान्यकारणों में अनिवार्यतः मिलते है , इसे गणितीय रूप में निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है –
F = C – P + 2
F + P = C + 2
जिनमें F = स्वतंत्र कोटि की संख्या
C = घटकों की संख्या P = निकायों की प्रावस्थाओं की संख्या है
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