Difference between growth and development in Hindi: Notes of Educational Psychology for TET/CTET 2024

Educational Psychology in Hindi
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Difference between growth and development in Hindi: टीईटी/सीटीईटी 2024 के लिए शैक्षिक मनोविज्ञान में ‘वृद्धि और विकास के अंतर’ पर संक्षिप्त और स्पष्ट नोट्स। जानें वृद्धि और विकास में अंतर, उनके गुणात्मक और मात्रात्मक पहलुओं, और कैसे ये दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं।

Educational Psychology in Hindi Difference between growth and development in Hindi

वृद्धि (Growth)-

समान्यतः growth शब्द का प्रयोग शरीर व उसके अंगों के भार आकार मे वृद्धि से होता है| इस वृद्धि को यंत्रों से नापा और तौला जा सकता है| इस वृद्धि की एक सीमा होती है| जिसे परिपक्वता कहते है| मानव मे समान्यतः यह  वृद्धि  18-20 की निश्चित आयु तक  रहती है|

 विकास  (Development)-

विकास शारीरिक अंगों के कार्य क्षमता की ओर संकेत करता है जिससे व्यक्ति की क्रियाओं मे निरंतर होने वाले परिवर्तनों से महसूस किया जा सकता है| अतः विकास शरीर के गुणवात्मक परिवर्तनों का नाम है| जिससे मानव की कार्य क्षमता, कार्य कुशलता और प्रगति का अवलोकन किया जा सकता है| अतः विकास की प्रक्रिया जीवन पर्यन्त एक क्रम मे चलती रहती है|

   मुनरो के शब्दो मे– “परिवर्तन शृंखला की यह अवस्था जिसमे बच्चा भूणावस्था से लेकर प्रोंढावस्था तक गुजरता है, विकास कहलाता है|”

  अर्थात व्यक्ति के विकास से अभिप्राय उसके गर्भ मे आने की स्थिति से लेकर प्रोंढावस्था प्राप्त होने की स्थिति तक है| sperm तथा ovam के संयोग से जीव की स्थिति होती है|

             यह स्थिति, जब तक भ्रूण गर्भ से बाहर नहीं आ जाता, गर्भ स्थिति काल(prental period) कहलाती है|

          280 दिन तक भ्रूण गर्भ मे रहता है जहा उसका विकास होता रहता है| जब भ्रूण पूर्ण विकसित हो जाता है  तब वह गर्भ मे भी रह पाता है तथा उसे बाहर आना पड़ता है| गर्भ से बाहर आने पर उसके विकास का नया काल शुरू हो जाता है| इसी स्थिति को गर्भोंत्तर स्थिति(postnatal period) कहते है| विकास का अर्थ परिवर्तन से परिवर्तन एक प्रक्रिया है जोकि हर समय चलती रहती है|

Difference between growth and development in Hindi:

बालक के विकास मे वंशानुक्रम तथा प्रयावरण का सापेक्षिक महत्व –

बालक के विकास मे वंशानुक्रम का अधिक महत्व है या वातावरण का व्यर्थ है | यह सर्वथा निरर्थक प्रतीत होता है |बालक की शिक्षा तथा विकास मे वंशनुक्रम तथा पर्यावरण दोनों का योग रहता है | बालक के विकास मे वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों का अलग – अलग महत्व नही है | हम बालक के व्यवहार  को निन्म्लिखित प्रकार से स्पष्ट कर सकते हे-

बालक का व्यवहार =  वातावरण x वंशानुक्रम 

मैकाईवर तथा पेज का कथन है- “जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है | परिणाम के लिए उनमे से एक भी उतनी ही आवश्यक है जितनी कि दूसरी किसी को भी न तो हटाया जा सकता है और न अलग किया जा सकता है |”

         इस प्रकार स्पष्ट है कि बालक के व्यक्तित्व के विकास मे वंशानुक्रम तथा पर्यावरण दोनों  का प्रभाव पढ़ता है|

वंशानुक्रम तथा पर्यावरण संबंधी अनेक अध्ययन किए गए है| इन अध्ययनो ने यह सिद्ध कर दिया है कि समान  वंशानुक्रम तथा समान पर्यावरण होने पर भी बालको मे भिन्नता होती है| इस प्रकार बालक के विकास मे न केवल  वंशानुक्रम का और न  केवल पर्यावरण का वरन दोनों का ही प्रभाव पड़ता है|

  शिक्षा की किसी भी योजना मे भी  वंशानुक्रम या पर्यावरण को एक दूसरे से प्रथक नहीं किया जा सकता है| बालक के व्यक्तित्व के विकास के लिए दोनों समान योग है|

     वूडवर्थ का कथन है- “ यह पूछना निरर्थक है की व्यक्ति के विकास के लिए  वंशानुक्रम तथा पर्यावरण मे से कौन अधिक महत्वपूर्ण है? दोनों मे से प्रत्येक पूर्णरूप से अनिवार्य है|”

  वूडवर्थ यह भीं स्वीकार करता है, “  वंशानुक्रम और वातावरण का संबंध जोड़(+) के समान होकर गुणा(x) के समान अधिक है| इसी कारण व्यक्ति इन दोनों का गुणनफल है, योगफल नहीं |

     क्रो एंड क्रो का कथन है, “ व्यक्ति का निर्माण न केवल  वंशानुक्रम  और न केवल पर्यावरण से होता है | वास्तव मे यह जैविकीय दाय और सामाजिक विरासत के एकीकरण की उपज है|”

     इस प्रकार कहा जा सकता है कि  वंशानुक्रम तथा वातावरण एक दूसरे के पूरक, सहायक तथा सहयोगी है| बालक की जो शक्तियाँ  वंशानुक्रम  से प्राप्त होती है उनका विकास वातावरण मे होता है|

परंतु यह संभव कठिन है कि दोनों के प्रभाव को एक दूसरे से पृथक किया जा सके|

      वंशानुक्रम मे वे सभी बातें सम्मलित होती है जो जन्म के समय नहीं वरन गर्भाधान के समय उपस्थित थी| इसी प्रकार पर्यावरण मे वे सब बाते सम्मलित होती है | जो व्यक्ति को जन्म के समय से प्रभावित करती है|

                 उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि  वंशानुक्रम तथा पर्यावरण दोनों ही महत्वपूर्ण है|

 => बालक के विकास मे  वंशानुक्रम  का पर्यावरण(वातावरण) का प्रभाव बताओ- 

 भूमिका-  वंशानुक्रम का साधारण अर्थ है माता – पिता तथा पूर्वजों के गुणो का संतान मे पाहुचना|

परंतु क्या माता-पिता के सभी गुण संतान मे पहुचते है? क्या ऐसा देखा गया है कि एक माता-पिता से उत्पन्न सभी बालक एक समान हो? अर्थात उनका बौद्धिक स्तर समान हो उनका रूप, रंग एक हो?

     गोरे माता-पिता की संतान काली और काले माता-पिता की संतान गोरी हो सकती है|

व्यक्ति पर उसके Genes के अतिरिक्त वातावरण का भी प्रभाव पडता है|

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                    वंशानुक्रम का अर्थ-

   वंशानुक्रम का साधरण अर्थ है- माता-पिता और पूर्वजो के गुणो का संतान मे प्रवेश करना| परंतु यह विवाद ग्रस्त प्रश्न है की माता-पिता के सभी गुण संतान मे पाहुचते है? क्या ऐसा होता है कि एक ही माता-पिता से उत्पन्न संतानों के गुण समान हो? प्रायः ऐसा देखने मे आता है कि जैसा माता-पिता होते है, वैसे ही उनकी संतान होती है| स्पस्ट है कि बालक को न केवल अपने माता-पिता से अपितु अपने पूर्वजों से भी शारीरिक गुण प्राप्त होते है| इसी को वंशानुक्रम और अनुवांशिकता के नाम से पुकारते है|

             वंशानुक्रम की परिभाषा-

वंशानुक्रम की कुछ परिभाषये इस प्रकार है-

जेम्स ड्रेवर के अनुसार – “ वंशानुक्रम का अर्थ माता-पिता से बच्चों तक शारीरिक तथा मानसिक लक्षणो का संक्रमण|”

पीटरसन के अनुसार- व्यक्ति अपने माता-पिता के माध्यम से पूर्वजो की जो विशेषताए प्राप्त करता है उसे वंशानुक्रम कहते है|”

बी० एन० झा० – वंशानुक्रम , व्यक्ति की जन्मजात विशेस्ताओं का पूर्ण योग है|

वुडवर्थ – “ वंशानुक्रम मे वे सभी बातें आ जाती है जो जीवन का आरंभ करते समय जन्म के साथ नहीं वरन गर्भाधान के समय जन्म से लगभग नौ माह पूर्व व्यक्ति मे उपस्थित थी|”

डगलस व हॉलैंड- “ एक व्यक्ति के वंशानुक्रम मे वे सब शारीरिक बनावटें शारीरिक विशेस्ताए, क्रियाएँ या क्षमताएं सम्मलित रहती है, जिनको वह अपने मटा-पिता , अन्य पूर्वजों या प्रजाति से प्रपट करता है|”

रास- एक संतति से अगली संतत्तियों मे प्राणी के गुण व गुणो के विक्रांत होने को वंशानुक्रम कहते है|”

जे० ए० थामसन – परंपरागत संतति के मध्य उत्पत्ति के संबंध दर्शाने वाला उपयुक्त शब्द वंशानुक्रम है|”

वलाक के विकास पर वंशानुक्रम  का प्रभाव=>

वंशानुक्रम का बालक की शिक्षा तथा विकास मे निन्म प्रभाव पड़ता है –

  1. शारीरिक प्रभाव – शारीरिक प्रभाव से संबन्धित एक अध्ययन कार्ल पियरसन ने किया था |

उसने अपने अध्ययन से जो निष्कर्ष निकले , वह इस प्रकार था – “यदि माता-पिता की ऊंचाई कम होती है तो संतान की भी ऊंचाई कम होती | यदि माता-पिता की ऊंचाई अधिक होती है तो संतान की ऊंचाई भी अधिक होगी |”

  • चरित्र पर प्रभाव – चरित्र पर प्रभाव जानने के लिए डगडेल ने एक अध्ययन किया |

 इस अध्ययन मे उसने अनेक परिवारों का अध्ययन किया | डगडेल ने jukes के वंशजो का अध्ययन किया |

   डगडेल ने jukes के वंशजो का अध्ययन 1877 मे किया था |उसने अपने अध्ययन से जो निष्कर्ष निकाला ,वह इस प्रकार है – “चरित्रहीन माता-पिता की संतान भी चरित्रहीन होती है |”

  • बुद्धि पर प्रभाव – वंशानुक्रम पर बुद्धि पर प्रभाव जानने के लिए गोडार्ड ने एक अध्ययन किया|

उसने यह अध्ययन kallikak नामक एक सैनिक के वंशजो पर किया |

                    गोडार्ड ने अपने अध्ययन से जो निष्कर्ष निकाला ,वह इस प्रकार है – “मन्द बुद्धि माता-पिता की संतान मन्द बुद्धि तथा प्रखर बुद्धि माता-पिता की संतान तीव्र बुद्धि वाली होती है |

  • सामाजिक स्तर पर प्रभाव – वंशानुक्रम का सामाजिक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ता है विनशिप ने रिचर्ड एडवर्ड के परिवार का अध्ययन किया| रिचर्ड स्वयं प्रतिष्ठित और गुण सम्पन्न परिवार की थी|  रिचर्ड के वंशज शिक्षक , डाक्टर , वकील तथा विधान सभा के सदस्य बने|
  • प्रतिभा पर प्रभाव – गाल्टन के अनुसार “ महान और प्रतिभाशाली व्यक्तियों  की संताने भी महान और प्रतिभाशाली होती है |”
  • मूल प्रवित्तियों पर प्रभाव – विद्वान थार्नडाइक के अनुसार – “ बालक की मूल प्रवित्तियों का मुख्य कारण उसका वंशानुक्रम है |” बालक का मूल प्रवृत्त्यात्मक व्यवहार वंशानुक्रम के कारण होता है |
  • व्यावसायिक योग्यता पर प्रभाव- कैटेल ने भी वंशानुक्रम का व्यावसायिक योग्यता पर प्रभाव जानने के लिए एक अध्ययन किया | उसने अमेरिका मे रहने वाले लगभग  900 वैज्ञानिकों का अध्ययन किया |वंशानुक्रम ही किसी व्यक्ति की व्यावसायिक कुशलता निर्धारित करता है |”
  • शारीरिक लक्षणो पर प्रभाव – कार्ल पीयर्सन का मत है कि यदि माता-पिता की लंबाई कम या अधिक होती है , तो उनके बच्चों की भी लंबाई कम या अधिक होती है|
  • प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव – क्यिलनबर्ग का मत है – कि बुद्धि की  श्रेष्ठता का कारण प्रजाति है यही कारण है की अमेरिकन श्वेत प्रजाति ,नीग्रो प्रजाति से श्रेष्ठ है |   

                      पर्यावरण का अर्थ- 

वातावरण के लिए पर्यावरण शब्द का भी प्रयोग किया जाता है| पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है-

परि+आवरण परि का अर्थ है “चारों ओर” एवं आवरण का अर्थ है “ढकने वाला” इस प्रकार पर्यावरण या वातावरण वह वस्तु है| जो चारों ओर से ढके या घेरे हुए है| अतः हम कह सकते है की व्यक्ति के चारों ओर जो कुछ है, वह उसका वातावरण है|

                   पर्यावरण की परिभाषा-  

रॉस- “ कोई भी वाहरी शक्ति जो हमे प्रभावित करती है पर्यावरण होती है|”

गिसवर्ट- कोई भी वह वस्तु जो किसी वस्तु को चारों ओर से घेरती एवं उसपर प्रत्यक्ष प्रभाव डालती है, पर्यावरण कहलाती है|

वुडवर्थ- पर्यावरण मे वे तत्व आते है जिन्होने व्यक्ति को जीवन आरंभ करने के समय से प्रभावित किया है|

जिमबर्ट- “ पर्यावरण वह सब कुछ है जो किसी व्यक्ति को चारों ओर से घेरे हुए है एवं उसपर सीधा प्रभाव डालता है|”

वोरिंग, लैंगफील्ड एवं वेल्ड जोन्स के अतिरिक्त व्यक्ति को प्रभावित करने वाली प्रत्येक वस्तु को पर्यावरण कहते है|

एनास्टसी- “ वातवर्ण वह हर वस्तु है जो व्यक्ति के पैतृको (genes) के अतिरिक्त प्रत्येक वस्तु को प्रभावित करता है|”

पर्यावरण का संबंध प्राणी से होता है| पर्यावरण तथा प्राणी एक दूसरे से इतने घनिष्ठ्ता से संबन्धित होते है कि उन्हे प्रथक नहीं किया जा सकता|

मैकाइवर तथा पेज का कथन है- “जीवन का पर्यावरण वास्तव मे परस्पर संबन्धित है|” प्राणी तथा पर्यावरण दो वस्तुए नही है | इन्हे एक दूसरे से प्रथक नहीं किया जा सकता है|

                      बालक के विकास पर पर्यावरण का प्रभाव-

  1.  कूले के द्वारा किया गया अध्ययन- कूले ने अपने  अध्ययन के द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि व्यक्तित्व के विकास मे वंशानुक्रम कि अपेक्षा वातवरण का अधिक प्रभाव पडता है| उन्होने यह निष्कर्ष निकाला कि उचित वातवरण के मिलने पर कोई भी व्यक्ति महान बन सकता है |
  2. फ्रीमैन के द्वारा किया गया अध्ययन – फ्रीमैन ने कुछ बालको को लेकर अध्ययन किया| उन्होने कुछ बालको को अनाथालय मे रखा| अनाथालय मे भेजने से पूर्व उनकी बुद्धि का मापन किया गया| हर प्रकार मापन की गयी बुद्धि का मध्यमान 101.4 था| उनको प्रेम तथा सहानुभूति के वातावरण मे रखा गया| इसके फलस्वरूप उनकी बुद्धि ललित्व मे बृद्धि हो गयी|
  3. गोर्डन द्वारा किया गया अध्ययन- सामाजिक और सांष्कृतिक वातावरण न मिलने पर मानसिक विकास की गति धीमी हो जाती है| उसने यह बात नदियों के किनारे रहने वाले बच्चों का अध्ययन करके सिद्ध की| इन बच्चों का वातवरण गंदा और समाज के अच्छे प्रभावों से था| उनको मानसिक विकास का उचित वातवरण नहीं मिल पाया| गोर्डन ने इस अध्ययन से निष्कर्ष निकला कि उचित सामाजिक वातावरण के अभाव मे बालको का मानसिक विकास संभव नहीं हो पता|
  4. बुद्धि पर प्रभाव- कैन्डोल का मत है कि बुद्धि के विकास मे वंशानुक्रम कि अपेक्षा वातवर्ण का प्रभाव कही अधिक पढ़ता है| उसने यह बात 552 विद्वानो का अध्ययन करके सिद्ध की| ये विद्वान लंदन की ` रॉयल सोसायटी` पेरिस की “ विज्ञान अकादमी” और बर्लिन की रॉयल अकादेमी के सदस्य थे| इन सदस्यों को प्राप्त होने वाले वातावरण के संबंध मे कैन्डोल ने लिखा है- अधिकांश सदस्य और अवकाश प्राप्त वर्गों के थे| उनको शिक्षा की सुभधाए थी| और उनको शिक्षित जनता एवं उदार सरकार से प्रोत्साहन मिला|
  5. अनाथ बालको पर प्रभाव- अनाथालय मे जिन बालको का पालन-पोषण होता है वे प्रायः निन्म परिवारों से संबन्धित होता है| परंतु उनको वहाँ अपने परिवारों की अपेक्षा अच्छा वातावरण मिलता है| फलस्वरूप वह अच्छे व्यति बन जाते है|
  6. शारीरिक विकास पर प्रभाव- जापानी और यहूदी छोटे कद के होते है| परंतु अनेकी जापनी और यहूदी जो अमेरिका मे अनेक वर्षो से रह रहे है| भौगोलिक दशाओं के कारण लंबाई मे बढ़ गए है| इनका कारण वंशानुक्रम न होकर पर्यावरण है|
  7. जुड़वा बालको पर प्रभाव- जुड़वा बालको के शारीरिक लक्षणो, मानसिक शक्तियों तथा शैक्षणिक योग्यताओं मे अत्यधिक समानता होती है| न्यूमैन तथा अन्य विद्वानो के कुछ जुड़वा बच्चो को अलग-अलग वातावरण मे रखकर उनका अध्ययन किया| उसने पाया कि नगर मे पालने वाले बालक बुद्धिमान, शिष्ट तथा चिंता मुक्त था| गाँव मे पलने वाला बालक बुद्धिहीन, अशिष्ट तथा चिंताग्रस्त था|

  Note- 1- विकास कि अवस्थाए 4 बताई है- पियाजे ने

  1. व्यक्तित्व के विकास की 5 अवस्थाए बताई है- फ्रायड ने
  2. विकास का फमबर्लन सिद्धांत- डोलार्ड तथा मिलर

                        विकास की विशेषताए-  

बालक के विकाश की विशेस्ताए होती है|एसी कुछ प्रमुख विशेषताए निन्म्लिखित है –

  • -विकाश मे क्रमिक परिवर्तन पाये जाते है | इन परिवर्तन मे निरन्तरता पाये जाते है| इसका तात्पर्य यह हुआ कि विकाश एक निरन्तर चकने वाली प्रक्रिया है |
  • विकाश कि विभिन्न अवस्ताए होती है | विकास किसी भी अवस्था मे सामान्य नही होता है|
  • विकास प्रगतिपूर्ण श्रंखला के रूप मे प्रकट होता है|
  • विकास परिवर्तनों का एक दूसरे के साथ किसी न किसी रूप मे संबंध अवश्य रहता है|
  • विकास परिवर्तनों की गति कभी एक समान नहीं होती| विकास परिवर्तनों की यह गति भिन्न-भिन्न अवस्थाओं मे भिन्न-भिन्न होती है\
  • गर्भावस्था मे बालक के विकास की गति सबसे अधिक तीव्र और प्रोढावस्था के पश्चात सबसे कम होती है|
  • जब बालक की शारीरिक या मानसिक विकास होता है तो इस विकास के फलस्वरूप बालक मे अनेक विशेस्ताए प्रकट होने लगती है|

                 बालक के शारीरिक  और मानसिक विकास को प्रभवित करने वाले कारक-

  1. पोषण
  2. शुद्ध वायु तथा प्रकाश
  3. रोग तथा चोट
  4. लिंग-भेद
  5. ग्रंथियों का स्राव
  6. संस्कृति
  7. बुद्धि

              विकास की परिभाषाएँ-

स्किनर के अनुसार- “ विकास क्रमिक और धीरे-धीरे होने वाली प्रक्रिया है|”

मुनरो के अनुसार- “ परिवर्तन श्रंखला की वह अवस्था जिसमे बालक भ्रूण अवस्था से लेकर प्रोढ़ावस्था तक गुजरता है, विकास के नाम से जानी जाती है|”

हरलॉक – “ विकास बढ्ने ( बड़े होने) तक ही सीमित नहीं है| यह व्यवस्थित तथा समानुगत प्रगतिशील कम है जो परिपक्वता की प्राप्ति मे सहायक होता है |

                    विकास  की प्रक्रिया के प्रमुख सिद्धान्त –

  1. वैयक्तिक भिन्नताओ का सिद्धान्त
  2. निरन्तर विकास का सिद्धान्त
  3. सुधार का सिद्धान्त
  4. वंशानुक्रम व वातावरण की अंतःक्रिया का सिद्धान्त
  5. विकास क्रम का सिद्धान्त
  6. सामान्य से विशेष की ओर का सिद्धान्त
  7. निकट से दूर का सिद्धान्त
  8. वैयक्तिक भिन्नताओ का सिद्धान्त- इससे तात्पर्य यह है की प्रणी का विकास पृथक-पृथक होता है| कहने का तात्पर्य यह है की समान अवस्था वाले बालक बालिकाओ के शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक ,आदि विकाश मे निश्चित रूप से भिन्नता पायी जाती है |
  9. निरन्तर विकाश का सिद्धांत- बालक के गर्भ मे आते ही विकास प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है| तथा अनवरत रूप से अग्रसर होती रहती है| परिणामस्वरूप व्यक्ति मे कोई अकास्मिक परिवर्तन नही होता|
  10. सुधार का सिद्धान्त – विकास मे स्वयं सुधार होता है| यह मानव माय का स्वभाव है कि वह अपने पर्यावरण से बहुत कुछ सीखता है और इस प्रकार वह अपने से वांछित सुधार करता है|
  11. वंशानुक्रम व वातावरण कि अंतःक्रिया का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के अनुसार बालक का विकास न केवल वंशानुक्रम के कारण और न केवल वातावरण के कारण होता है वरन इन दोनों के सापेक्ष प्रभाव के कारण ही उसका विकास होता है |
  12.  विकास क्रम का सिद्धान्त – बालक का विकाश अक निश्चित एवं एक विशिष्ट क्रम मे होता है| गति विकाश मे सर्वप्रथम बालक बैठना सीखता है| तत्पश्चात खड़ा होकर चलना सीखता है| इसी प्रकार सामाजिक, मानसिक तथा संवेगात्मक विकास मे भी एक निश्चित क्रम होता है|

मानव विकास की अवस्थाएं –

विभिन्न आयु स्तरो पर भिन्न-भिन्न विकास होते है| इन आयु स्तरों को मानव विकास की अवस्थाए कहा गया है| भिन्न-भिन्न विद्वानों मे मानव विकास की अवस्थाओं को अपने ढंग से उनकी व्याख्या की है| लेकिन सभी का एक मत है कि समान्यतः अध्यापन संबंधी बातों को ध्यान मे रखते हुए विकास की 3 अवस्थाए महत्वपूर्ण है|

  1. शैशवावस्था
  2. बाल्यावस्था
  3. किशोरावस्था

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